
विजयादशमी विशेष: तेजी से बदलते दौर में सामाजिक बिखराव को एकजुटता में बांधे रखने के उद्देश्य से 100 परिवारों के लोग भक्ति के बंधन में बंधे, समाज में दे रहे सेवा-सहयोग और समर्पण का संदेश, दैनिक सम्राट की स्पेशल रिपोर्ट...
जयपुर। जहां चाह... वहां राह... कहते हैं कि यदि व्यक्ति की मन की चाह सात्विक भाव और समर्पण की हो तो लक्ष्य अपने आप पूरे हो जाते हैं। कभी सोचा नहीं था कि 26 साल पहले भक्ति की जो परंपरा शुरू हुई, वह निरंतर चलते-चलते एक अनुष्ठान बनकर आम जन को एक सूत्र में बांध देगी। यह बात श्रीराम सुंदरकांड मंडल, ढेहर का बालाजी को देखकर सत्य साबित हो रही है।
दरअसल, ये सभी हमारे जैसे ही साधारण लोग जो सामाजिक बिखराव को दूर करने और बच्चों को सनातन धर्म के जरिए संस्कार - संस्कृति से जोड़ा जा सके, इसी भावना का उद्देश्य लेकर 26 सालों से निरंतर प्रभु श्रीराम का गुणगान कर रहे हैं। जयपुर के श्रीराम सुंदरकांड मंडल, ढेहर का बालाजी, सीकर रोड से आसपास बसी 10 से ज्यादा कॉलोनियों में रहने वाले 100 से ज्यादा परिवारों के हजारों लोग जुड़े हुए हैं। ये सभी बिना किसी भेदभाव, अमीर-गरीब का फर्क भुलाकर 26 सालों से हर शनिवार को नियमित रूप से 5 से 7 किलोमीटर के दायरे में सुंदरकांड पाठ का आयोजन कर रहे हैं। इसके लिए किसी भी व्यक्ति से कोई पैसा नहीं लिया जाता है। केवल आस्था के सहारे सेवा, समर्पण और सहयोग की मानवीय परंपरा का संदेश देना इनका मकसद है।
मंडल के अध्यक्ष हेमंत सैनी ने बताया कि वर्तमान में परिवार टूट रहे हैं और समाज में लोग अपने घरों तक ही सीमित हो गए हैं, यहां तक कि त्योहारों पर भी मिलने-मिलाने की परंपरा खत्म होती जा रही है। ऐसे में सुंदरकांड पाठ के जरिये सभी लोगों का एक-दूसरे से मानवता का रिश्ता कायम रहता है। उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति निस्वार्थ भाव से उनके मंडल से जुड़ सकता है। शर्त केवल इतनी है कि उसे नियमित रूप से शनिवार को होने वाले सुंदरकांड पाठ में उपस्थित होना जरूरी है ताकि प्रभु से उसका संबंध बना रहे और उसमें सेवा-समर्पण का भाव जागृत हो सके। मंडल के सदस्यों में कब किसके घर में पाठ होना है इसकी सूची हर साल दिसंबर माह के अंत में पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर सर्वसम्मति से तैयार कर ली जाती है।
नवरात्र में 51 आसनों पर होते हैं पाठ
मंडल परिवार के ही विष्णु महरवाल का कहना है कि हर साल आश्विन नवरात्र के दौरान सभी सदस्य 9 दिन तक राधागोविंद कॉलोनी में अखंड श्रीरामचरितमानस का पाठ करते हैं जिसमें हर सदस्य अपने निर्धारित समयानुसार पाठ स्थल पर उपस्थित होकर हाजिरी देता है। नवमी को यही आयोजन 51 आसनों पर संगीतमय अखंड श्रीरामचरितमानस के साथ शुरू होता है और विजयादशमी को इसकी पूर्णाहुति होती है।
कोरोना में की एक—दूसरे की मदद
कोरोना महामारी के दौरान भी मंडल के सदस्यों ने एक—दूसरे की मदद की। यदि किसी साथी को कोई चिकित्सा या राशन की जरूरत पड़ी तो उसे मुहैया करवाई गई। मोहनलाल सैनी ने बताया कि कोविड महामारी के दौर में भी प्रभु श्रीराम को सुंदरकांड पाठ सुनाने की परंपरा अनवरत जारी रही। हालांकि, कोविड गाइडलाइन के कारण प्रभु का दरबार किसी एक सदस्य के घर ही विराजमान रहा, जहां उस परिवार ने पाठ करने की परंपरा जारी रखी। मंडल के अन्य सदस्य परिवारों ने अपने—अपने घरों में ही निर्धारित समय पर नियमित रूप से पाठ किया।मंडल की व्यवस्थाओं में सदस्य दीपक कुमावत, मोहनलाल सैनी, कमल कुमावत, दिनेश कानूनगो, ब्रजमोहन पारीक, सत्यनारायण गुप्ता, दयाशंकर विजयवर्गीय, प्रकाश शर्मा, प्रहलाद प्रजापत सहित कई गणमान्य लोगों का विशेष सहयोग रहा।
मंडल के संस्थापक सदस्य सुरेश कुमार शर्मा, बद्रीनारायण शर्मा बताते हैं कि नियमित पाठ करने की परंपरा वर्ष 1999 में शुरू हुई थी, तब केवल इस कार्य में चार—पांच लोग ही जुड़े हुए थे। अब इस परिवार में 5 से 7 किलोमीटर के दायरे में बसावट बढऩे के साथ ही यहां रहने वाले हजारों लोग जुड़ चुके हैं। इसमें व्यापारी, पुलिस, प्रशासन, प्रोफेशनल सीए, सीएस, सरकारी कर्मचारी, सैलून की दुकान करने वाले, बिजलीकर्मी सहित अनेक लोग शामिल है, जो बिना किसी भेदभाव के सामूहिक रूप से प्रभु का भजन करते हैं। उनका संदेश केवल इतना है कि यदि हम एक-दूसरे से जुड़े रह सकते हैं तो अन्य क्षेत्रों में भी आमजन इसी तरह से समूह बनाकर एकता के सूत्र में बंध सकते हैं और दुख-दर्द बांट सकते हैं। इससे नई पीढ़ी को संस्कार देने में भी मदद मिलती है। **